घंटों गुज़रते एक पहेली की उलझन में,क्या यही प्यार है: कवि अरमान राज़



कभी कभी तेरी परछाई चाहूँ,
  कभी तेरी एक झलक की हसरत।।
सवाल खुद से करता हूँ बस ये,
  क्या यही प्यार है।।।

चलती राहों पर थमा हुआ सा,
  भारी भीड़ में भी अकेला सा मैं।।
घंटों गुज़रते एक पहेली की उलझन में,
  क्या यही प्यार है।।।

अनजानी और धुंधली सी तस्वीर को,
  हकीकत सा समझता मैं।।
साये के भी साये में सुकून ढूँढता,
  क्या यही प्यार है।।।

वजह हर बात की कुछ और ही,
  समझता हर किस्से को अपना सा मैं।।
होश में भी मदहोशी सी लगती क्यूँ,
  क्या यही प्यार है।।।

जागता सा रहता रातोँ रात,
   चाँद भी है पर कुछ कमी भी।।
अमावस सी लगे पूनम और,
  पूनम भी लगे अमावस सी मुझे।।।
  क्या यही प्यार है।

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